बाघों की नगरी में बाघों के रक्षकों की दुर्दशा
सवाई माधोपुर, 4 जुलाई। रणथंभौर और प्रदेश के सभी टाइगर रिज़र्व में एक तरह से बाघों की जीवनरेखा कहे जाने वाले प्राइवेट टाइगर ट्रेकर्स की स्तिथि बुरी है। आवश्यक सुविधाओं के आभाव में भी दिन-रात काम करने को मजबूर इन सच्चे सेवकों के ज़ज़्बे को सलाम है।
प्रदेश के तीन टाइगर रिज़र्व, सरिस्का, रणथंभौर और मुकुन्दरा में लगभग 40 के करीब प्राइवेट टाइगर ट्रेकर्स संविदा पर काम कर रहे हैं। पैदल गश्त के दौरान सुरक्षा के नाम पर इनके पास केवल लाठी होती है। न ही कोई आधुनिक सुरक्षा उपकरण ना ही तकनीकी ट्रेकिंग उपकरण।
पैदल गश्त करते हुए टाइगर ट्रैकिंग करना हर किसी के बस का काम नहीं है, जब किसी बाघ से किसी का आमना सामना हो जाए तो कोई कितना भी बहादुर क्यों न हो सब भूल जाता है, लेकिन इनका आए दिन बाघों से ज़मीन पर आमना सामना होता रहता है। ये इनका अनुभव ही है जो इनको बचाये रखता है। (सार्वजनिक सूचना: किसी को भी जो टाइगर ट्रेकिंग न जानता हो अथवा वन विभाग द्वारा उक्त कार्य पर न लगाया गया हो उपरोक्त कार्य करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ऐसा करना अपराध है।)
उक्त ट्रेकर्स को मानदेय के नाम पर मात 5 से 6 हज़ार रुपए प्रतिमाह तनख्वाह मिलती है व इनके कोर्डिनेटर को 12 से 15 हज़ार प्रतिमाह मिलते हैं जो ऑफिस में बैठ कर काम करता है।
टाइगर ट्रेकर्स को आवश्यक सुविधाओं में :
1. ट्रेकिंग के जूते
2. केमोफ्लेज वर्दी
3. सेफ्टी जैकेट
4. जीपीएस डिवाइस
5. बनोकुलर (दूरबीन)
6. वाकी टॉकी
7. स्लीपिंग बैग
8. कैरी बैग
कैमरा आदि जो वन विभाग उपलब्ध करवाता है। साथ ही मोटरसाइकिल भी इनकी मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है
ऐसे कई किस्से हैं जिनमें टाइगर ट्रेकर्स का आमना सामना टाइगर से हुआ है । जिसमें कानेटी गांव की घटना में जहाँ एक युवा बाघ नें एक व्यक्ति पर हमला कर उसे मार दिया था उसने ट्रेकर्स पर भी चार्ज कर दिया था तब ट्रेकर्स को लीड कर रहे हनुमान सिंह गुर्जर बताते हैं कि जैसे तैसे उन्होंने लाठियां ज़मीन पर पीट पीट का शोर मचा के बाघ के हमले से अपने आप को बचाया था।
बाघ ही नहीं ट्रेकर्स को जंगल में भालू, पैंथर, जरख और सांपों जैसे कई अन्य वन्यजीवों का भी सामना करना पड़ता है। कई बार ट्रेकिंग करने के लिए जूते तक नहीं होते हैं तो सैंडल, फटे जूतों और कभी कभार चप्पल से भी ट्रेकिंग करनी पड़ती है।
वन विभाग में अब नए उच्चाधिकारी आए हैं उम्मीद है इनसे की कोई ठोस कदम टाइगर ट्रेकर्स के उत्थान के लिए उठाएंगे।
हनुमान सिंह गुर्जर, मुकेश शर्मा, मीठालाल गुर्जर कुछ पुराने टाइगर ट्रेकर्स हैं जो करीब 10 सालों से ट्रेकिंग का काम कर रहे हैं । वहीं नए टाइगर ट्रेकर्स को भी इनसे प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
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om sai
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- om sai
- Februari 24, 1995
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