Sunday, August 08, 2021

करौली के अयाल वाले भेड़िये


करौली, 8 अगस्त रणथंभौर बाघ परियोजना के पार्ट-2 करौली के कैलादेवी एवं इसके आसपास के इलाके के भेड़ियों में एक अजीब सी विशेषता देखने को मिली है। 

यहां के कुछ भेड़ियों के गर्दन से पीठ तक बाल किसी शेर की अयाल की तरह दिखने लगे हैं हालांकि ये उतने ज्यादा नहीं जितने किसी शेर की गर्दन पर होते हैं लेकिन आसनी से पहचान में आ जाए इस तरह से दिखाई दे रहे हैं।

देखा गया है भेड़ियों में उनके (फर या कोट) में रंगों का वेरिएशन होता है । गहरे भूरे घूसर रंग से हल्के स्लेटी रंग तक इनमें पाए गए हैं। हालांकि करौली के भेडियो को छोड़ किसी अन्य स्थान के भेड़ियों पर इस तरह की अयाल नहीं देखी गई है। 

भेड़िये एक बेहद जटिल सामाजिक व्यवस्था में रहते हैं। ये बहुत ज्यादा शर्मीले किस्म के एवं लुकाछिपी में माहिर होते हैं। इनमें झुंड जो पैक कहलाता है 5 से 10 तक भेड़िये हो सकते हैं। ये मिलकर शिकार करते हैं इसलिए इन्हें पैक हंटर्स कहा जाता है। 

पैक की कमान अल्फा मेल अथवा अल्फा फीमेल के पास होती है, भोजन पर पहला अधिकार अल्फा मेल अथवा अल्फा फीमेल का एवं उनके बच्चों का होता है। जोड़ा बना कर प्रजनन करने का अधिकार भी अल्फा मेल या फीमेल के पास होता है। रात्रिचर होने कारण ये रात के समय ज्यादा एक्टिव होते हैं, हालांकि कभी कभार सुबह या शाम के समय भी ये अठखेलियाँ करते दिख जाते हैं।

पुराने समय में इनके अंधाधुंध शिकार की वजह से इनकी संख्या में भारी गिरावट आई इसके साथ ही इनकी प्रजाति जो कभी वर्मिन मानी जाती थी सीधे शेड्यूल-1 में पहुंच गई। मुख्य कारण इस प्रजाति की दुर्दशा का इनको केटल लिफ्टर माना जाना और इनके साथ अंधविश्वास भरी कहानियां जुड़ा होना रहा है। 

हालांकि शिकार पर प्रतिबंध के काफी समय बाद धीरे-धीरे इस प्रजाति नें वापस कम बैक किया है। अब कहीं कहीं इनकी संख्या में व्यापक इज़ाफ़ा भी हो रहा है। अब इनके पैक में कहीं कहीं 5 से 7 तो कहीं 8 से 10 तक भेड़िये दिखने लगे हैं। 

राजस्थान में करौली, सवाई माधोपुर के अलावा धौलपुर, भरतपुर, राजसमन्द, हाड़ौती के सभी जिले, सीकर, चुरू, दौसा, पाली सहित कई  स्थानों पर भेड़ियों को देखा जा सकता है लेकिन इनको ढूंढना भूसे में सुई को ढूंढने जैसा ही है। 

करौली-माधोपुर के आसपास का पर्यावास इनको एक सुरक्षित स्थान उपलब्ध करवाता है। लेकिन राजस्थान में व्यापक तौर पर इनके संरक्षण की महत्ती आवश्यक्ता है। वहीं एक्सपर्ट्स का मानना है कि रिसर्चर्स को इन अयाल वाले भेड़ियों पर साइंटिफिक स्टडी भी करनी चाहिए। 

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om sai

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