Wednesday, June 30, 2021

अपने अस्तित्व की लडाई लड़ता बाघ !

 

बाघ 



परिचय 

टाइगर (बाघ) का वैज्ञानिक नाम पेंथरा टाइगिरिस है |इसकी औसत लम्बाई 9 फूट और वजन औसतन 200-250 किग्रा होता है | इसका रंग भूरा/पीला होता है तथा पर काली धारिया होती है|फीमेल टाइगर बाघिन की औसत लम्बाई लगभग 8 फुट तथा वजन नर के मुकाबले 40-50 किग्रा कम होता है |मुख्य रूप से यह जीव आद्र जलवायु के वनों में पाया जाता है तथा दलदलीय क्षेत्र में रहना पसंद करता है |यह बहुत जयादा शर्मीला स्वभाव के होता है |इसमें  सूघने और देखने की गजब की शक्ति पाई जाती है |यह घात लगा कर शिकार करता है |इसका मुख्य आहार सांभर,चीतल,सूकर है |यह आदमखोर हो जाने पर इंसानों पर भी हमला करता है और उन्हें मारकर खा जाता है |यह अकेला रहेना ज्यादा  पसंद करता है व मादा शावको के साथ रहती है व शावको को शिकार करना सिखाती है | इनकी आँखे उभरी होने के कारण चोडे क्षेत्र को आसानी से देख सकता है |ये रात्रि में भी आसानी से देख सकता है |इसके मुह में 4 बड़े दांत होते है,2 उपर के जबड़े में और 2 नीचे के जबड़े में होते है,जिन्हें  K9 कहा जाता है तथा इनकी लम्बाई 3 इंच होती है| ये अपने शिकार गर्दन दबोच कर करते है,जिसे ये 2-3 दिन तक खाता है| बाघ अन्य बड़ी बिल्लियों में अपवाद है यह पानी बहुत अधिक पसंद करता है| यह पूरे समय अकेला रहता है केवल सहवास के समय कुछ दिन मादा के साथ रहता है| यह अपने एक निश्चित इलाके में रहता है जिसकी औसतन लम्बाई लगभग 25 कि.मी. होती है |यह अधिकांश समय अपने इलाके की सुरक्षा के लिए अपनी गंध छोड़ते हुए घूमता रहता है ये गंध में अपने मूत्र का छिडकाव करते है और अपने शरीर की किसी पेड़ से रगड़ कर अपने इलाके को चिन्हित करता है |मौका मिलने पर यह परभक्षियो (तेंदुआ,अजगर,मगरमच्छ आदि )पर हमला करता है और उन्हें मार देता है| अपनी सुरक्षा और शिकार के लिए इनके पंजो में नाखून होते है जिनकी लम्बाई 2.5 -3 इंच होती है,जो शिकार करने में इसकी सहयता करते है |ये अपने इलाके को लेकर काफी आक्रामक होते है व अन्य बाघों के साथ लड़ाई लड़ते रहते है | 




मादा बाघिन के गर्भ का समय लगभग 120 दिन का होता है ऐसे समय में मादा बाघिन किसी सुनसान और घने जंगल में चली जाती है और वाही अपने शावको को जन्म देती है| बाघिन एक बार में 3-4 शावको को जन्म देती है व 2-3 महीने तक वाही उनका पालन करती है ,जन्म से लेकर 7-8 दिनों में शावको की आँखे खुलती है तथा 2-3 महीने के बाद ये उनको अपने साथ लेकर चलती रहती है |बाघ बाघिन से पुन: सहवास करने के लिए शावको को मार देते है| शावक बाघिन के साथ 1.5 -2 वर्ष तक रहते है तथा फिर बागिन इन्हें छोड़ देती है इसी समय ये शिकार करना सीखते है |
बाघ को एक सप्ताह में खाने के लिए 60-70 किलो गोस्त की आवशयकता होती है | 



इतिहास 

बाघ भारतीय जंगलो पर बहुत समय पहले से राज करते आये है,लेकिन रजा महाराजाओ ने अपनी ताकत प्रदर्शित करने के लिए अंधाधुन्द शिकार किया | फिर अंग्रेजो ने इसकी खल की तस्करी के लिए इनका शिकार किया ,जिसके चलते जंगलो से इनकी संख्या तीव्र गति से घटने लगी और एक समय एसा आया की बाघ जंगलो में नही के बराबर हो गये | इस खूबसूरत जीव की खाल व पंजो के नाखूने के लिए अवैध शिकार किया गया और जो आज भी होता है |बाघ मुख्य रूप से एशियाई महाद्वीप में पाया जाता है जिनमे से प्रमुख देश नेपाल,बांग्लादेश,मलेशिया ,इंडोनेशिया, चीन,थाईलैंड तथा भारत प्रमुख है ,इन देशो के अलावा रूस में भी टाइगर पाए जाते है | राजा अपने शक्तिपर्दर्शन व अपने शोक के लिए इनका बहुत ज्यादा शिकार किया करते थे |




भारत सरकार ने सन 1970 में बाघों के अवैध शिकार पर रोक लगायी व 18 नवम्बर 1972 को बाघ को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया तथा सन 1972 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम बनाया गया ,जिसके अंतर्गत बाघ के शिकार पर धरा 51 के अनुसार 7 साल की कड़ी सजा व 25000 जुर्माने की राशी तय की गयी| 1973 में टाइगर प्रोजेक्ट की स्थापना की गयी |यह एक्ट भारत में सबसे पहले दूधवा टाइगर रिज़र्व में 1988 में लागु की गयी  किया गया व इसके बाद अलग अलग राज्यों में अलग अलग टाइगर रिज़र्व बनाये गये ,जिनमे इस खूबसूरत जीव के संरक्षण का कार्य किया गया,जिसके फलस्वरूप 1989 में बाघों की संख्या बढ़कर लगभग 4000 से ज्यादा हो गयी थी| बाघों के संरक्षण में सरकार के  सामने नई चुनोतिया सामने आई जो थी बढती जनसंख्या व जंगलो की अंधाधुन्द कटाई ,जिससे बाघों के अनुकूल आवास पर बहुत बूरा प्रभाव पड़ा | मानव अपने पालतू जानवरों को चराने के लिए जंगले में ले जाते वहा उनका सामना बाघ से होता बाघ जंगली जानवर व मसहरी होने के कारण  उनके पालतू मवेशियों पर हमला करते थे तथा उनका शिकार कर लेते थे इससे आक्रोशित लोग बाघों पर हमला कर उसे मार देते थे घटते जंगलो और बढ़ते मानवीय दखल के कारण फिर से बाघों की प्रजाति पर संकट मंडराने लगा |जिसके कारण सन 2007 की गणना के अनुसार देशः में बाघों की संख्या लगभग 1400 ही रहे गयी | यह बाघों की प्रजाति के लिए एक बहुत ही बूरा समय था,यह प्रजाति उस समय विलुप्ति की कगार पे आ गयी थी|बाघ परिस्तिथिकी तंत्र के पिरामिड में शीर्ष पर होते है ये परिस्तिथिकी तंत्र के संतुलन को बनाये रखता है| फिर सरकार ने इनके संरक्षण पर सही से ध्यान देना शुरू किया व संरक्षित क्षेत्र में आने वाले गावो का विस्थापन करना शुरू किया विस्थापन में टाइगर रिज़र्व के कोर जोन में पड़ने वाले गावों को जंगले से बहार निकला गया ,जिसके चलते इन्सान और बाघों में संगर्ष कम होने लगा सरकार के लगातार विस्थापन के पर्यास से  बहुत से गावो को विस्थापित किया गया जिससे जंगल के अंदर मानवीय दखल कम हुई |इसके फलस्वरूप बाघों को अनुकूल आवास मिलने लगा जिससे इनकी संख्या में कुछ व्रद्धी हुई| जिससे सन 2018 की गणना के अनुसार भारत में बाघों की संख्या लगभग 2970 के हो गयी |वर्तमान में पूरे विश्व की बाघों की आबादी का 70% हिस्सा भारत में ही निवास करता है यदि आज हमने इसका संरक्षण नही किया तो हम इस खूबसूरत जीव का संरक्षण नही किया तो हम  इसे खो देंगे व आने वाली पीढियों को इसकी तस्वीर सिर्फ किताबों व कागजो में ही नज़र आएगी आज इन्सान ने पहले ही बहुत सारी जीवो की प्रजातियों को विलुप्त कर दिया है,जो हमे किताबों में ही देखने को मिलती है ,यदि बाघ और अन्य विलुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण नही किया तो हम इनको भी खो देंगे |जब आने वाली पीढ़िय इनकी तस्वीर देखेंगी तो वो हमसे एक ही सवाल पूछेंगी की एसा खूबसूरत जीव था तो हमने इनका संरक्षण क्यों नही किया ?और हमारे पास कोई जवाब नही होगा | 



वर्तमान में भारत में  कुल टाइगर रिज़र्व की संख्या 51 है और कुछ नये टाइगर रिज़र्व प्रस्तावित है ,जो निरंतर बाघों के संरक्षण व इनकी वृद्धि के कार्य में कर्येरत है|

-aavish kumar

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om sai

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